शीर्षक: “उधार की कड़वी सच्चाई और परमात्मा का न्याय”
विषय सूची:
- उधार: एक आदत, एक व्यसन
- जब उधार ने रिश्तों को तोड़ा
- महापुरुषों के विचार: सच्चाई, ईमानदारी और उधार
- उधार और स्वार्थ की कीमत
- परमात्मा की दृष्टि: धर्म और अधर्म का न्याय
- उधार के दुष्परिणाम और आत्म-सुधार
कहानी:
गांव का नाम था ‘सुखपुरा’, जो हमेशा अपनी समृद्धि, सादगी और लोगों की परस्पर सहायक प्रवृत्ति के लिए जाना जाता था। गांव के लोग एक-दूसरे की ज़रूरतों में हमेशा आगे रहते, और कोई भी दुखी या परेशान होता, तो गाँव के लोग साथ खड़े होते थे। सुखपुरा में गोविंद नामक एक व्यक्ति था, जिसकी ईमानदारी और कठिन परिश्रम के लिए उसकी काफी प्रशंसा की जाती थी। लेकिन गोविंद में एक विशेषता थी जो कुछ लोगों को अजीब लगती – वह उधार देने या लेने से हमेशा बचता था।
एक बार, जब गांव के मुखिया हरिया ने गोविंद से उसकी इस आदत का कारण पूछा, तो गोविंद ने गंभीर स्वर में जवाब दिया, “हरिया भाई, यह उधार एक ऐसी नाजुक रस्सी है जो रिश्तों को धीरे-धीरे तोड़ देती है। आज एक उधार से शुरुआत होती है, और फिर धीरे-धीरे रिश्तों में खटास आने लगती है। अगर वक्त पर उधार लौटाया जाए, तो शायद बचे-खुचे संबंध बचे रहें, परंतु जब उधार लौटता नहीं, तो साथ में विश्वास भी टूट जाता है।”
गोविंद के विचारों में न केवल व्यक्तिगत अनुभवों की गहराई थी, बल्कि उन महापुरुषों की सीखें भी थीं, जिन्होंने संसार को सत्य और ईमानदारी का मार्ग दिखाया था।
महापुरुषों के विचार: सच्चाई और ईमानदारी
गोविंद अक्सर स्वामी विवेकानंद के कथनों का जिक्र करता था। उसने हरिया को कहा, “स्वामी विवेकानंद ने कहा है, ‘ईमानदारी और सच्चाई को जीवन का आधार बनाओ, जो उधार का भार नहीं उठाते, वे न केवल समाज में सम्मान पाते हैं, बल्कि आत्मिक रूप से भी स्वतंत्र होते हैं।’ अगर हम उधार से बचें, तो हमारा मन हमेशा हल्का रहता है।”
गांव के लोग धीरे-धीरे इस बात को समझने लगे, लेकिन कुछ लोग अब भी इस पर सवाल उठाते थे। वे सोचते थे कि कठिन समय में दूसरों को उधार देना तो परोपकार का कार्य है। गोविंद ने उन्हें बताया कि, “परोपकार का अर्थ है अपनी इच्छाओं का त्याग कर दूसरे का हित करना, लेकिन उधार का मतलब है किसी और को निर्भर बनाना और किसी दिन खुद के लिए बोझ खड़ा करना।”
उधार का लालच और स्वार्थ
गांव में एक और व्यक्ति था – श्यामू। श्यामू हर किसी से उधार लेकर अपनी झूठी शानो-शौकत बनाए रखता था। उसे एक कहावत हमेशा याद रहती थी, “धन आने पर दुनिया झुकती है, और न लौटाने पर भगवान झुका देता है।” श्यामू को लगता था कि पैसे लौटाने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि लोग समय के साथ भूल जाएंगे।
परंतु समय के साथ श्यामू का चरित्र उजागर होता गया। महात्मा गांधी का एक कथन, “धन का उपभोग करो, लेकिन उससे संबंधों को न खरीदो,” श्यामू पर चरितार्थ होता था। गांव के लोग श्यामू से परेशान रहने लगे थे, और धीरे-धीरे उसकी स्थिति यह हो गई कि लोग उसे देखकर रास्ता बदलने लगे।
परमात्मा की दृष्टि: धर्म और अधर्म का न्याय
श्यामू का जीवन एक उदाहरण बन गया कि किस प्रकार उधार और स्वार्थ व्यक्ति को अंधकार में ले जाता है। एक दिन, श्यामू का पुत्र अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गया। श्यामू हर व्यक्ति के पास मदद मांगने गया, लेकिन किसी ने उसकी सहायता नहीं की। लोगों का कहना था, “जब तुमने हमें उधार देकर धोखा दिया था, तब तुमने धर्म और विश्वास को नष्ट किया था। भगवान ने तुम्हें बहुत मौके दिए, लेकिन तुमने हर मौके पर खुद का स्वार्थ देखा।”
श्यामू निराश हो गया और मंदिर में जाकर भगवान के सामने रोते हुए माफी मांगने लगा। उसने कहा, “हे भगवान, मुझे क्षमा कर दो। मैंने लोगों से झूठे वादे किए और अपनी ही स्वार्थी इच्छाओं में खो गया।”
कहते हैं कि जब परमात्मा किसी को सुधारना चाहते हैं, तो वे उसे कष्ट देते हैं। श्यामू के साथ भी यही हुआ। उसकी यह विपत्ति उसे जीवन का सबक सिखा गई। उसने संकल्प किया कि वह अपने सभी उधार लौटाएगा, और सच्चाई के मार्ग पर चलेगा।
उधार के दुष्परिणाम और आत्म-सुधार
श्यामू के इस आत्म-सुधार के बाद गाँव के लोगों ने उसे एक अवसर दिया। लेकिन शर्त यह थी कि वह अपने सारे उधार लौटाएगा और किसी को भी धोखे में नहीं रखेगा। श्यामू ने अपने मेहनत के बल पर अपने सभी उधार चुकाए, और हर किसी से क्षमा मांगी।
कहानी का अंत गोविंद के शब्दों से होता है, जब वह गाँव के लोगों से कहता है, “उधार लेना और देना, दोनों ही विवेक के साथ करना चाहिए। अगर जरूरत हो तो दूसरों की सहायता अवश्य करें, परंतु बिना सोचे-समझे किसी पर विश्वास करके उधार देना न सिर्फ हमारी नादानी होगी, बल्कि हमारा ईश्वर के प्रति अन्याय भी होगा।”
निष्कर्ष
इस कहानी में ईश्वर का एक संदेश छुपा था: “जो व्यक्ति कर्तव्य और सच्चाई का पालन करता है, वही मेरी दृष्टि में प्रिय है।” गोविंद ने इस बात को सिद्ध किया कि परमात्मा की सच्ची सेवा आत्म-निर्भरता और सच्चाई है। उधार जीवन का कोई समाधान नहीं, बल्कि केवल एक अस्थायी आश्रय है, और इसका भार अंततः हमारे ही सिर आता है।